हृदय को पोषण पहुंचाने वाले हृद्य कहीं जाते हैं हृद्य द्रव्यों में में अर्जुन का स्थान विशेष है महर्षि चरक ,महर्षि सुश्रुत व आयुर्वेद के लगभग सभी मनीषियों ने अर्जुन का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है
परिचय

अर्जुन, हरीतकी (combretaceae) कुल की वनौषधि है यह भारत में प्राय सभी प्रांतों में विशेषतः बंगाल, मध्यप्रदेश, दक्षिण-बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि स्थानों पर पाई जाती है ।
हिमालय की तराई वह शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नदी नालों के किनारे इसकी कतारें देखने को मिलती है ।
अर्जुन की मुख्यतः 3 प्रजातियां पाई जाती हैं
1- टर्मिनलिया अर्जुन
2- टर्मिनलिया टामेटोजा (उत्तर प्रदेश में कोह , गुजरात में ऐन, महाराष्ट्र में सादड़ा, बंगाल में पियासाल कहते हैं )
3- नकली अर्जुन (स्टेरक्युलिआ यूरेनस)
वनस्पति परिचय
इसके वृक्ष15 से 20 मीटर ऊंचे होते हैं छाल की बाहरी परत स्वेत व अंदर से रक्त वर्ण होती है पेड़ पर छाल गोदने से इसमें से एक प्रकार का दूध निकलता है इसके पत्ते अमरूद के पत्तों के जैसे दिखाई देते हैं इसमें बैशाख ज्येष्ठ के महीने में पुष्प लगते हैं इसका फल कमरख की भांति होता है ।
नाम
पांडु पुत्र अर्जुन के कितने नाम हैं वो इस वनौषधि के पर्यावाची कहे जा सकते हैं
अर्जुन अर्जयेत रोगनाशकता अनेन तः (जिसके द्वारा रोगनाशकता प्राप्त होती हो )
धवल (छाल की बाहरी परत सफेद होने के कारण)
कुकुभ ( फैला हुआ )
इंद्रदु (बड़ा वृक्ष )
वीरवृक्ष (दृढ कांड वाला )
नदीसर्ज ( नदी किनारे उत्पन्न होने वाला )
संस्कृत – अर्जुन, धवल, कुकुभ,
हिंदी –अर्जुन, काहूं
मराठी – सदरू
गुजराती – सादड़ो
अंग्रेजी –अर्जुना ( ARJUNA)
लेटिन – टर्मिनलिया अर्जुना (Terminalia Arjuna )
उपयोगी अंग
छाल ( त्वक ) और पत्ते मुख्यत: औषधि हेतु उपयोगी हैं
रासायनिक संगठन
इलेगिक एसिड , अर्जुनिक अम्ल , ग्लूकोसाइड अर्जुनेटिन , बी- सीटोस्टिरॉल , फ़ायलेडिन ये इसकी छाल में , इसके साथ ही टेनिन ( फलो में ) कल्सियम , मेग्निशम और अलुमुनियम पाया जाता है ।
गुण- धर्म
आयुर्वेदानुसार
रस – कषाय । तिक्त।
गुण – लघु , रुक्ष ।
विपाक – कटु
वीर्य – शीत
प्रभाव – हिरद्य
अर्जुन-त्वक वर्ण रोधक , कफ , पित्त , मूत्रल , पाण्डु रोग , तृषा नाशक , मेदो वृद्धि , श्वास , हृदय रोग, दाह, स्वेदाधिक्य नाशक ।
यूनानी मतानुसार
अर्जुन की छाल कड़ी कफ निस्सारक , पौष्टिक कामोद्दीपक , मूत्र को साफ लाने वाली हड्डी के फैक्चर और घावों पर इसका लेप उपयोगी है ।
आधुनिक मतानुसार
डॉक्टर डी एन घोष के अनुसार टर्मीनेलिया अर्जुन के बजाय टर्मिनलिया टोमेटोजा हृदय रोग के लिए हितकर है
डॉक्टर महेस्कर के अनुसार टर्मिनलिया-अर्जुन हृदय रोगों के लिए बहुत उपयोगी है हृदय रोगो में अर्जुनछाल का टिंचर के परिणाम संतोषजनक रहे है
हृदय शैथिल्य और हृदय उत्तेजक ये दोनों ही गुण अर्जुन छाल में होने के कारण यह हृदय रोगो के लिए बेहतर औषधि सिद्ध हुई है ।
डॉक्टर के सी बॉस के अनुसार हृदय की प्राकृतिक स्थिति में अर्जुन का विशेष परिणाम दिखाई नहीं देता परंतु हृदय की क्रिया मंद हो गई है तो अर्जुन का कार्य विशेष रूप से दिखाई देता है ।
डॉ देसाई के अनुसार अर्जुन का आंखों पर लेप नेत्र रोगों के लिए उपयोगी रहा है ।
घाव भरने में
अर्जुन की छाल का काढ़ा बनाकर घावों को धोने से घाव जल्दी भरते हैं।
मुख पाक में
तिल के तेल में अर्जुन छाल के कपड़छन चूर्ण ( Powder ) को मिलाकर गण्डूष करें
कान के दर्द में
अर्जुन के पत्तों का रस डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
सौंदर्य हेतु प्रयोग
मुंह पर छाया (व्यंग) पढ़ने पर -अर्जुन की छाल का चूर्ण ( Powder ) शहद में मिलाकर लगावे
कील मुहांसों पर – अर्जुन की छाल, मंजीठ व वासा की छाल का बारीक पाउडर मधु के साथ लगाने से कील मुंहासे दूर हो जाते हैं
पसीने की बदबू दूर करने के लिए – अर्जुन के पत्ते व जामुन के पत्तों का उबटन बनाकर लगावे
आसान दैनिक सौंदर्य और स्वास्थ्य टिप्स / Easy Daily Beauty And Health Tips In Hindi
कुष्ठ रोग के लिए
अर्जुन के कवाथ से स्नान करने से कुष्ठ रोग दूर होता है
ह्रदय रोगों को दूर करने के लिए
अर्जुन की छाल 10 ग्राम, गाय का दूध 150 मिली, 10 ग्राम छोटी इलायची 5 नग का चूर्ण, और जल 150 ग्राम लेकर 150 GM पानी के जलने तक औटावे, छान कर ठंडा कर पीने से ह्रदय स्वस्थ होता है।
पके लाल टमाटरओं का रस ढाई सौ ग्राम व् अर्जुन की छाल का चूर्ण ( Powder ) 3 ग्राम डालकर पीने से हृदय की बढ़ी हुई धड़कन ठीक होती है
धड़कन वृद्धि व् स्नायु दुर्बलता में
सफेद खरैटी की जड़, अर्जुन की छाल, गोखरू, जटामांसी व् अश्वगंधा सभी को मिला कर चूर्ण ( Powder ) बना कर रख ले इस में से 1 से 3 ग्राम चूर्ण दूध से सेवन करवाएं
श्वेत प्रदर में
अर्जुन की छाल व सफेद चंदन दोनों को लेकर कवाथ बनाकर सेवन करने से श्वेत प्रदर ठीक होता है
भस्मक रोग (ज्यादा भूख लगना)
उड़द के आटे व् अर्जुन की छाल का चूर्ण ( Powder ) दोनों को देशी घी में सेक ले , इसको भैंस के दूध में पकावे इसमें शक्कर मिला, खीर बनाकर सेवन करवाएं
प्रमेह व धातु पौष्टिक हेतु
अर्जुन की छाल 20 ग्राम ,सफेद चंदन 20 ग्राम, ताल मखाना 20 ग्राम , हल्दी 5 ग्राम सभी का चूर्ण बनाकर रख लें 1 से 3 ग्राम चूर्ण ( Powder ) जल के साथ सेवन करवाएं
अर्जुन छाल की शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधियाँ
1- कुमकुम आदि चूर्ण – हृदय रोगों के लिए
2 -अर्जुन घृत हृदय में उपयोगी
3 – अर्जुनारिष्ट ( पार्थाद्वारिष्ट ) – हृदय रोग और वायु विकार के लिए अर्जुन के इस्तेमाल ही पैदा किए
निर्देश वैद्यकीय निर्देश
मात्रा
क्षीर पाक में अर्जुन छाल चूर्ण ( Powder ) 3 से 7 ग्राम
अर्जुन का स्वरस 5 से 10 मिली
अर्जुन छाल का कवाथ 20 से 50 मिली
अर्जुन छाल चूर्ण ( Powder ) 2 से 3 ग्राम
सेवन कर सकते हैं
अर्जुन के उपयोग बताए गए हैं परंतु किसी भी रोग के उपचार हेतु चिकित्सक से परामर्श करके ही इनका उपयोग करें
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