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गर्भावस्था और उसका विकास/Pregnancy and its development

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आप गर्भवती होना चाहती हैं, आपको उत्सुकता है, आप जानना चाह रही हैं ” गर्भावस्था Pregnancy “ के बारे में, कि यह क्या है ? तो यह लेख ( Article ) आपके लिए है ।

गर्भाशय में पुरुष के शुक्राणु व स्त्री के अंडाणु के सहयोग से उत्पन्न स्थिति गर्भ कहलाती है। यह भ्रूण गर्भाशय में 9 महीने की अवधि तक रहकर एक शिशु के रूप में विकास करता है । यह ” गर्भावस्था Pregnancy “ कहलाती है ।

आयुर्वेद के अनुसार

” शुक्र शोणित जीव संयोगे तु खलु कुक्षिगते गर्भ संज्ञा भवति । ” ( च0 शा0 4/5 )

आचार्य चरक के अनुसार – शुक्र , शोणित व् जीव के कुक्षि ( गर्भाशय ) में संयोग को गर्भ कहा जाता है ।

 

गर्भाधान (Fertilaization) कैसे होता है ?

  • सामान्यतया महिलाओं का महावारी चक्र 28 से 35 दिन का होता है पीरियड खत्म होने के 12 से 16 वें दिन डिंबोत्सर्ग समय (Ovulation Period) माना जाता है ।
  • सामान्यतया पीरियड समाप्त होने के बाद महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का निर्माण होता है ।
  • इससे गर्भाशय ( Uterus ) में ऊतकों की परत का निर्माण होता है । यह शुक्राणु ( Sperm ) के लिए अनुकूल होता है।
  • एस्ट्रोजन की वृद्धि के कारण ही एक अन्य हार्मोन ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन ( LH ) बनना शुरू हो जाता है।
  • ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन ( LH ) ही डिंबोत्सर्ग ( Ovulation ) के लिए जिम्मेदार होता है ।
  • बीजागम काल (Ovulation Period) में डिंबकोष (Ovary) से निकलकर डिम्बाणु (Ovum), बीजवाहनी नलिका (Fallopian tube) में आता है
  • यदि इस समय शुक्राणु (Spermetozoa) से अंडाणु (Ovum) का संपर्क होता है तो कुछ घंटों में ही निषेचन (Fertilization) हो जाता है।
  • अब यह निषेचित डिम्ब ( Fertilized Ovum ) युग्मक कहलाएगा।
  • निषेचन की प्रक्रिया में यद्यपि बहुत संख्या में शुक्राणु रहते हैं परंतु अति क्रियाशील शुक्राणु ही निषेचन में भाग ले पाता है।
  • निषेचन की क्रिया फेलोपियन ट्यूब के कलशिका ( Ampulla ) नामक भाग में होती है।
  • सेक्स के 48 घंटे तक वीर्य कलशिका ( Ampulla ) में क्रियाशील अवस्था में रह सकता है ।
  • गर्भाशय ग्रीवा ( Uterine Cervix ) का क्षारीय माध्यम वीर्य (Semen) को कलशिका ( Ampulla ) तक पहुंचाने में मदद करता है।
  • शुक्राणुओं के सिर भाग (Acrosomal) से हैलोराइडेज़ एंजाइम (Haloridase enzyme) निकलता है । जो अंडाणु के बाहरी भाग (Zona Pellucida ) का भेदन करता है।
  • निषेचित अंड ( Fertilized Ovum ) लगभग 38 घंटे तक फेलोपियन ट्यूब के कलशिका ( Ampulla ) में रहता है ।
  • अब इसका विभाजन शुरू हो जाता है और यह फेलोपियन ट्यूब से निकलकर गर्भाशय से जुड़ जाता है ।
  • यह ही गर्भधारण की प्रक्रिया है।
  • इस समय आपको विशेष सावधानी की आवश्यकता है क्योंकि इस समय गर्भपात की संभावना अधिक रहती है।

अब आप लगभग 2 सप्ताह की गर्भवती हैं। बधाइयाँ।

आयुर्वेद के अनुसार गर्भाधान (Fertilaization) कैसे होता है ?

आचार्य सुश्रुत के अनुसार –

” तत्र स्त्री पुंसयोः संयोगे तेजः शरीराद्वायुरूदीरयति तत्स्तेजोSनिलसन्निपातच्छक्र च्युतं योनिमाभिप्रतिपधते संसृजयते चात्रवेंन ततोअग्निसोमसंयोगात संसृजयमानो गर्भाशयमनुप्रतिपधते ।” ( सु 0 शा 0 3/4 )

अर्थात – ” स्त्री-पुरुष के समागम के समय तेज महाभूत शरीर में वायु को उत्तेजित करता है जिससे शुक्र का क्षरण होता है तथा वह शुक्र योनि में प्रविष्ट होकर आर्तव से मिल जाता है इस प्रकार अग्नि ( आर्तव ), सोम ( शुक्र ) के संयोग से उत्पन्न हुआ गर्भ गर्भाशय में आता है तथा वायु के द्वारा प्रेरित हुआ जीव भी गर्भाशय में प्रविष्ट होता है ।”

इस प्रकार गर्भ का निर्माण होता है । आप गर्भवती हो जाती है । बधाइयाँ

कैसे जाने कि आप गर्भवती है ? How to know if you are pregnant?

प्रथम महीने की गर्भावस्था

प्रथम महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 4 मिमी व् भार 1. 25 से 1.50 ग्राम के लगभग होता है ।अभी यह एक भ्रूण है इसमें कोशिकाओं की दो परतें होती हैं इन्हीं कोशिकाओं में कुछ सूक्ष्म स्पंदन प्रमस्तिष्क ( Cerebral ) , नेत्र पुटिकाएँ ( Optical Vesicles ) का दिखना शुरू हो जाता है ।

आयुर्वेद के अनुसार प्रथम महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार

” तत्र प्रथम मसि कललं जायते ।” ( शु 0 शा0 3/18 )

अर्थात – प्रथम मास में गर्भ का स्वरूप कललं ( गोला ) जैसा रहता है ।

आचार्य चरक के अनुसार –

“स सर्वगुणवान गर्भत्वमापन्नः प्रथमे मासि सम्मूर्च्छितः सर्वधातुकलुषिकृत खेटभूतो भवत्यविक्तविग्रहः सदसद भुतानगव्यः ।” ( च 0 शा 0 4/9 )

अर्थात – इस अव्यक्त शरीर में सभी इंद्रियां होती हैं क्योंकि यह शरीर अपने नेत्रन्द्रियों द्वारा नहीं देखा जा सकता। इसलिए इसे अव्यक्त शरीर कहते हैं। जिस प्रकार एक वृक्ष के बीज में उसकी शाखा प्रशाखाओ से युक्त विशाल वृक्ष व्यक्त होने की सामर्थ्य रखता है तथा अनुकूल समय में व्यक्त होता है वही स्थिति गर्भ के प्रथम मास में होती है।

दूसरे महीने की गर्भावस्था

दूसरे महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 25 मिमी व् भार 4 से 20 ग्राम हो जाता है। यह राजमा के समान दिखाई पड़ता है। इसमें नाक कान आंख की आकृति कुछ स्पष्ट होने लगती है शाखाओं व अंगुलियों का बनना शुरू हो जाता है गर्भ शरीर की वक्रता कुछ कम हो जाती है ।

आयुर्वेद के अनुसार दूसरे महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार –

“द्वितीये शीतोष्मानिलैरभिप्रपचयमानानां महाभूतानां संधान्तो घनः सञ्जायते, यदि पिण्डः पुमान स्त्री चेत पेशी नपुंसकं चिदर्बुदमिति ।”( शु 0 शा0 3/18 )

अर्थात – दूसरे महीने में कललं स्वरूप वाला गर्भ घन रुप में हो जाता है। इसमें स्थित पंचमहाभूत वात पित्त कफ से परिपक्व होकर एक ठोस आकार ग्रहण कर लेते हैं । जो अपने इंद्रियां द्वारा देखे जा सकते हैं यदि यह आकार पिंड के समान है तो पुरुष. यदि पेशी के समान है तो स्त्री तथा यदि अर्बुद के समान है तो नपुंसक की उत्पत्ति होती है।

आचार्य चरक के अनुसार भी ऐसा ही कहा गया है – “द्वितीय मासि घनः सम्पद्यते पिण्डः पेश्यर्बुदं वा तत्र घनः पुरुषः पेशी स्त्री अर्बुदं नपुंसकम ।”

 

तीसरे महीने की गर्भावस्था

 तीसरे महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 10 सेमी व् भार 150 ग्राम के लगभग हो जाता है उसका शिर , वक्ष व् गर्दन स्पष्ट दिखने लगती है अंगुलियों पर नाखून की उत्पत्ति होने लगती है। लिंग का स्वरूप निर्धारण पूर्ण रूप से हो जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार तीसरे महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार –

“तृतीये हस्तपाद शिरसां पंचपिण्डका निवर्तंतेअंगप्रत्यङ्ग विभागश्च सूक्ष्मभवति । ” ( शु 0 शा 0 3/18 )

अर्थात – तीसरे महीने में गर्भस्थ शिशु में दो हाथ दो पैर , एक शिर इस प्रकार पञ्च पिण्डिका के रूप में माना है आंतरिक अवयवों को सूक्ष्म रूप से माना है ।

आचार्य चरक के अनुसार भी ऐसा ही कहा गया है -“तृतीये मासि सर्वेन्द्रियाणि सर्वांगवयवश्च यौगपधमेंनाभिनिवर्तन्ते ।”

चौथे महीने की गर्भावस्था

चौथे महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 22 सेमी तथा उसका वजन 240 ग्राम के लगभग है चेहरे की आकृति का स्पष्ट दिखाई पड़ती है शिर व त्वचा पर बाल उगने लगते है। अब नरम हड्डियों से कठोर हड्डियों में परिवर्तन होने लगता है ।गर्भ में स्पंदन होने लगता है जिसे श्रवण यंत्र ( Stethoscope ) द्वारा सुना जा सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार चौथे महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार –

“चतुर्थे सर्वांगप्रत्यंग विभागः प्रव्यक्ततरो भवति , गर्भ ह्रदयप्रव्यक्ति भवाच्चेतनाधातुरभिव्यक्तों भवति , कस्मात तत्स्थानत्वात ।” ( सु 0 शा 03/19)

अर्थात – चौथे मास में गर्भ शरीर में हृदय व्यक्त हो जाता है। जिससे चेतना की उत्पत्ति हो जाती है क्योकि चेतना को हृदय में माना गया है इसलिए गर्भिणी माता को द्वोहृदिनी कहते है यानि कि वह दो हृदय वाली हो जाती है क्योकि एक हृदय स्वयं का व् दूसरा ह्रदय गर्भस्थ शिशु का होता है गर्भस्थ शिशु माता की इच्छाओ के द्वारा अपनी इच्छाओ को प्रकट करता है।

आचार्य चरक के अनुसार –

” चतुर्थ मासि स्थिरत्व मापधते गर्भः ।” ( च 0 शा0 4/26 )

अर्थात – चौथे मास में गर्भः में स्थिरता आ जाती है जिससे तीसरे महीने की अपेक्षा चौथे महीने में अधिक वृद्धि होती है ।

पांचवे महीने की गर्भावस्था

पांचवे महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 30 सेंटीमीटर और उसका भार 480 ग्राम लगभग हो गया है । उसके कान तथा आँखों की पलकें व् भोहैं बन चुकी है ।

आयुर्वेद के अनुसार पांचवे महीने की गर्भावस्था

 

आचार्य सुश्रुत के अनुसार-

‘पंचमे मनः प्रतिबुद्वि तरंम भवति । ‘ (सु0 शा 03/30)

अर्थात – गर्भ में मन के जाग्रत होने से सजीवता के लक्षण अधिक व्यक्त होते है।

आचार्य चरक के अनुसार-

‘‘ पंचमे मासि गर्भस्य मांसषोणितोपचये भवत्यधिकमन्यभ्यो मासेभ्यः।‘‘ (च0 शा0 4/21)

अर्थात – गर्भ के पंचम मास में मांस व रक्त की वृद्धि होने पर गर्भ की वृद्धि उतरोत्तर होती है।

छठे महीने की गर्भावस्था

छठे महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 33 सेंटीमीटर और उसका भार लगभग 1 किलोग्राम हो गया है उसकी ज्ञानेंद्रियां व कर्मेंद्रियां अपने कार्य को करने लगती हैं। गर्भ का स्पंदन पेट पर हाथ रखकर महसूस किया जा सकता है ।

आयुर्वेद के अनुसार छठे महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार-

” षष्ठे बुद्धिः ।” ( सु 0 शा 0 3/36 )

अर्थात – ओजादि की वृद्धि के कारण बुद्धि अधिक प्रव्यक्त हो जाती है ।

 

आचार्य चरक के अनुसार-

“षष्ठे मासि गर्भस्य बलवर्णोपचयो भवत्य धिकामन्यण्भ्यो मासेभ्यः ।” ( च 0 शा 0 4/22 )

गर्भः के छठे महीने में अन्य महीनो की अपेक्षा बल , वर्ण , ओज की वृद्धि अधिक होती है । शरीर पर बाल, रोम , नख आदि की वृद्धि होती है ।

सातवें महीने की गर्भावस्था

सातवें महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 40 सेमी और उसका भार 1500 ग्राम हो गया है। गर्भ के सभी अंग प्रत्यंगो का विकास इतना हो जाता है कि वह गर्भाशय के बाहर आकर भी जीवित रह सकता है यदि किसी कारण से समय के पूर्व जन्म भी हो जाए तो समुचित देखभाल के बाद वह जीवित रह सकता है वह अपनी आँखे खोल व् बंद कर सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार सातवें महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार-

” सप्तमे सर्वाङ्गप्रत्यङ्गविभागः प्रव्यक्ततर: ।” ( सु 0 शा 0 3/30 )

अर्थात – सातवे महीने में गर्भ के सभी अंग प्रत्यंगो का विभाजन स्पष्ट रूप से हो जाता है ।

आचार्य चरक के अनुसार-

” सप्तमे मासि गर्भः सर्वैभावैराप्याप्यते।” ( च 0 शा 0 4/23 )

अर्थात – सातवे महीने में सभी अंगो का पूर्णरूप से निर्माण होने से वे पुष्ट रहते है तथा जीवन की सभी क्रियाये सुचारु रूप से सम्पादित होती है ।

 

आठवें महीने की गर्भावस्था

 

आठवें महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 41 सेंटीमीटर है उसका भार लगभग 2 किलो 100 ग्राम हो गया है । इस महीने में जन्म लिए शिशु की जीवनी शक्ति कम पाई जाती है यदि लालन पोषण तथा परिचर्या ठीक प्रकार से नहीं की जाती है तो जीवाणुओं के संक्रमण के कारण शिशु की मृत्यु होने की संभावना अधिक रहती है । इस समय उसका शरीर भरा भरा बन रहा हैं । फेफड़े भी अच्छी तरह विकसित हो चुके हैं ।

आयुर्वेद के अनुसार आठवें महीने की गर्भावस्था

आचार्य सुश्रुत के अनुसार-

” अष्टमेSस्थिरीभवतयोजः ।” ( सु 0 शा 03/38 )

अर्थात – आठवें महीने में गर्भ में स्थित शिशु का ओज अस्थिर रहता है। वह कभी माता के शरीर में चला जाता है तो कभी गर्भ के शरीर में रहता है जब माता के शरीर में जाता है तो माता प्रसन्न हो जाती है तथा जब गर्भ के शरीर में जाता है तो गर्भस्थ शिशु प्रसन्न और माता म्लान ( अप्रसन्न ) हो जाती है यदि उस समय प्रसव हो जाता है तथा यदि गर्भ के शरीर में ओज रहता है तो वह जीवित रहता है, तथा यदि माता के शरीर में ओज रहता है तो मृत शिशु जन्म लेता है या जन्म के पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो जाता है ।

आयुर्वेदाचार्यो ने इस महीने होने वाले प्रसव को अप्रशस्त माना है इस महीने में जन्म हुए बालक का जीवन संदिग्ध माना है।

 

नवें महीने की गर्भावस्था

नवें महीने में आपके गर्भस्थ शिशु की लंबाई लगभग 50 सेमी और उसका वजन लगभग 3 से 3.5 किलोग्राम तक होता है सामान्य प्रसव काल 280 दिन या 40 सप्ताह होता है फिर भी गर्भिणी में व्यक्तिगत भिन्नताओ के कारण यह दिन कुछ घाट या बाद भी सकते हैं अब आपका शिशु इस समय पूर्ण विकसित हो चुका होता है अब उसके जन्म होने की तिथि आगई है । आप माँ बनने वाली है बधाइयाँ ।

आयुर्वेद के अनुसार नवें महीने की गर्भावस्था

सामान्यत: सभी आयुर्वेद के आचार्यों ने प्रसव काल नौवें से दशवें मास में मन है । उसके बाद में होने वाले प्रसव को विकारी प्रसव कहा है । प्रसव के बाद वह पूर्व जन्म के कर्मो , गर्भावस्था में भोगे गए सुख – दुःख को भूल जाता है तथा अपने नए जीवन का आरम्भ नए सिरे से करता है बधाइयाँ।

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